भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब चली रेल / इब्बार रब्बी
Kavita Kosh से
जब चली रेल तो रुलाई आई!
छूट रही है दिल्ली,
खुसरो का पीहर।
निजामुद्दीन औलिया,
यमुना पुल, मिंटो ब्रिज और
प्रगति मैदान।
छूट रहा है घर, अपना जीवन,
जब चली रेल तो वर्षा आई,
गलने लगी स्मृति, झपने लगी आँख
दिल्ली! बहुत याद आई।
रचनाकाल : 03.07.1990