भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिना टिकिट के / इसाक अश्क

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:11, 9 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिना टिकिट के
गंध लिफाफा
घर-भीतर तक डाल गया मौसम।

रंगों
डूबी-
दसों दिशाएँ
विजन
डुलाने-
लगी हवाएँ
दुनिया से
बेखौफ हवा में
चुम्बन कई उछाल गया मौसम।

दिन
सोने की
सुघर बाँसुरी
लगी
फूँकने-
फूल-पाँखुरी,
प्यासे
अधरों पर खुद झुककर
भरी सुराही ढाल गया मौसम।