भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कपास / इला प्रसाद
Kavita Kosh से
आसमान की नीली चादर पर
बादलों की कपास धुनकर
किसने ढेरियाँ लगाई हैं ?
मैंने आँखों ही आँखों में
माप लिया पूरा आकाश
रूई के गोले उड़ते थे
यत्र-तत्र-सर्वत्र
नयनाभिराम था दृश्य
मैं सपनों के सिक्के लिए
बैठी रही देर तक
बटोरने को बेचैन
बादलों की कपास
झोली भर
लेकिन कोई रास्ता
जो आसमान को खुलता हो
नज़र नहीं आया........