भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विश्वास / इला प्रसाद

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:47, 9 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सूई की नोक भर विश्वास था मन में।
सूई की नोक पर बैठी रही रात भर।
चुभता रहा मन में अपना ही विश्वास
सहती गई रात भर।