भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक जन्मदिन / आलोक श्रीवास्तव-२
Kavita Kosh से
अभी अभी लांघे है तुमने अट्ठारह वसंत
अभी अभी तुमने देखा है एक सपना
अभी अभी तुम खुद हुई हो वसंत
अभी अभी तुम ख़ुद हुई हो एक सपना
इस सपने को क्या कह कर पुकारूं
कौन-सा छंद दूं इस वसंत को ?