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सड़क पर खुली है एक खिड़की / उदयन वाजपेयी

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सड़क पर खुली है एक खिड़की

गुलमुहर की छाँव पर सिर रखे
एक बूढ़ा रात आए स्वप्न से
धागे निकालकर चुपचाप बुन रहा है
सालों पहले मरी अपनी औरत का रुग्ण चेहरा

शायद बीत चुकी हो अब तक
उसके संशय की घड़ी
या शायद ख़ुद वह