भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुनौ सखि बाजत है मुरली / भारतेंदु हरिश्चंद्र
Kavita Kosh से
अजय यादव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:00, 11 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र }} <poem> सुनौ सखि बाजत है मुरली…)
सुनौ सखि बाजत है मुरली।
जाके नेंक सुनत ही हिअ में उपजत बिरह-कली।
जड़ सम भए सकल नर, खग, मृग, लागत श्रवन भली।
’हरीचंद’ की मति रति गति सब धारत अधर छली॥