भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

देखि सखि चंदा उदय भयो / भारतेंदु हरिश्चंद्र

Kavita Kosh से
अजय यादव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:37, 12 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र }} <poem> देखि सखि चंदा उदय भयो।…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देखि सखि चंदा उदय भयो।
कबहूँ प्रगट लखात कबहुँ बदरी की ओट भयो।
करत प्रकास कबहुँ कुंजन में छन-छ्न छिपि-छिपि जाय।
मनु प्यारी मुख-चंद देखि के घूँघट करत लजाय।
अहो अलौकिक वह रितु-सोभा कछु बरनी नहिं जात।
’हरीचंद’ हरि सों मिलिबे कों मन मेरो ललचात॥