भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुरु चरनन में ध्यान लगाऊं / भजन
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:37, 12 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKBhajan |रचनाकार= }} <poem>गुरु चरनन में ध्यान लगाऊं। ऐसी सुमति हमे दो…)
गुरु चरनन में ध्यान लगाऊं।
ऐसी सुमति हमे दो दाता ॥
मैं अधमाधम पतित पुरातन।
किस विधि भव सागर तर पाऊं ।
ऐसी दृष्टि हमें दो दाता।
खेवन हार गुरु को पाऊं ॥
गुरु चरनन में ...
गुरुपद नख की दिव्य ज्योति से।
निज अन्तर का तिमिर मिटाऊं ।
गुरुपद पदम पराग कणों से।
अपना मन निर्मल कर पाऊं ॥
गुरु चरनन में ...
शंखनाद सुन जीवन रन का
धर्म युद्ध में मैं लग जाऊं ।
गुरुपद रज अंजन आँखिन भर।
विश्वरुप हरि को लख पाऊं ॥
गुरु चरनन में ...
भटके नहीं कहीं मन मेरा।
आँख मूंद जब उनको ध्याऊं ।
पीत गुलाबी शिशु से कोमल।
गुरु के चरन कमल लख पाऊं ॥
गुरु चरनन में ध्यान लगाऊं ॥