भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
किसे ख़बर थी तुझे इस तरह सजाऊँगा / बशीर बद्र
Kavita Kosh से
अजय यादव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:35, 13 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बशीर बद्र |संग्रह=उजाले अपनी यादों के / बशीर बद्…)
किसे ख़बर थी तुझे इस तरह सजाऊँगा
ज़माना देखेगा और मैं न देख पाऊँगा
हयातो-मौत फ़िराको-विसाल सब यकजा
मैं एक रात में कितने दिये जलाऊँगा
पला बढ़ा हूँ अभी तक इन्हीं अन्धेरों में
मैं तेज़ धूप से कैसे नज़र मिलाऊँगा
मिरे मिज़ाज की ये मादराना फ़ितरत है
सवेरे सारी अज़ीयत मैं भूल जाऊँगा
तुम एक पेड़ से बाबस्ता हो मगर मैं तो
हवा के साथ बहुत दूर दूर जाऊँगा
मिरा ये अहद है मैं आज शाम होने तक
जहाँ से रिज़्क लिखा है वहीं से लाऊँगा
(१९७०)