भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक मुट्ठी धान में / उदयप्रताप सिंह

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:37, 13 नवम्बर 2009 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ये रोज कोई पूछता है मेरे कान में
हिंदोस्ताँ कहाँ है अब हिंदोस्तान में ।

इन बादलों की आँख में पानी नहीं रहा
तन बेचती है भूख एक मुट्ठी धान में ।

तस्वीर के लिये भी कोई रूप चाहिये
ये आईना अभिशाप है सूने मकान में ।

जनतंत्र में जोंकों की कोई आस्था नहीं
क्या फ़ायदा संशोधनों से संविधान में ।

मानो न मानो तुम ’उदय’ लक्षण सुबह के हैं
चमकीला तारा कोई नहीं आसमान में ।