भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
फ़ासले / परवीन शाकिर
Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:42, 14 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन …)
पहले ख़त रोज़ लिखा करते थे
दूसरे तीसरे तुम फ़ोन भी कर लेते थे
और अब ये कि तुम्हारी ख़बरें
सिर्फ़ अख़बार से मिल पाती हैं