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तुमने ज़र्रों को तारों की तनवीर दी / फ़राज़
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तुमने ज़र्रों <ref>कणों</ref>को तारों की तनवीर<ref>ज्योति</ref>दी
तुमसे गो<ref>यद्यपि</ref>अपनी आँखें भी छीनी गईं
तुमने दुखते दिलों की मसीहाई <ref>उपचार</ref>की
और ज़माने से तुमको सलीबें मिलीं
काख़ो-दरबार<ref>महल और राज सभा</ref>से कूचा-ए-दार <ref>फाँसी की गली</ref>तक
कल जो थे आज भी हैं वही सिलसिले
जीते-जी तो न पाई चमन की महक
मौत के बाद फूलों के मरक़द<ref>समाधि</ref>मिले
ऐ मसीहाओ! यह ख़ुदकुशी कब तलक
हैं ज़मीं से फ़लक़ तक बड़े फ़ासिले
शब्दार्थ
<references/>