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क़ायनात के ख़ालिक / परवीन शाकिर
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क़ायनात के ख़ालिक<ref>सृष्टा</ref>
देख तो मिरा चेहरा
आज मेरे होंठों पर
कैसी मुस्कराहट है
आज मेरी आँखों में
कैसी जगमगाहट है
मेरी मुस्कराहट से
तुझको याद क्या आया
मेरी भीगी आँखों में
तुझको कुछ नज़र आया
इस हसीं लम्हे को
तू तो जानता होगा
इस समय की अज़्मत को
तू तो मानता होगा
हाँ तिरा गुमाँ सच है
हाँ कि आज मैंने भी
जिंदगी जन्म दी है
शब्दार्थ
<references/>