भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समुद्र-9 / पंकज परिमल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:42, 17 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पंकज परिमल |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> देवताओं को छिपने क…)
देवताओं को
छिपने की सर्वोत्तम जगह
समुद्र में मिली
समुद्र के बेहतरीन रत्नों के
उपयोग का सौभाग्य भी
जब ब्रह्मांड में भारी मारकाट
मच रही थी
तब वे शांताकार बने हुए
भुजंग शैया पर सुख से सोए थे
उनके नाभिकमल के संरक्षण में
कतिपय सठियाये बुध्दिजीवी
चारों दिशाओं में जय-जय कर रहे हैं
ब्लैक-कैट-कमांडो की तरह
शेषनाग का फन
उन पर शैडो की तरह तना था
समुद्र उनके लिए
जेड श्रेणी की सुरक्षा व्यवस्थायुक्त
और सुविधा संपन्न आवास था