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इन्तज़ार / मदन गोपाल लढा
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अब छोडिए भाईजी !
किसे परवाह है
आपके गुस्से की
इस दुनिया में।
मिल सको तो
एकमेक हो जाओ
इस मुखौटों वाली भीड़ में
या फ़िर
मेरी तरह
धार लो मौन
इस भरोसे
कि कभी तो आएगा कोई
मेरी पीड़ा परखने वाला
आए भले ही
आसमान से।
मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा