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प्रेमपत्र-4 / मदन गोपाल लढा

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पोच गया
फीका पड़ गया
आखरों का रंग
प्रीत की पहली पाती पर
जम गई
वक़्त की गर्द।

किंतु आज भी है
तुम्हारा इन्तज़ार !


मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा