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एक दोस्त के नाम / परवीन शाकिर
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लड़की
ये लम्हे बादल हैं
गुज़र गए तो हाथ कभी नहीं आएँगे
इनके लम्स को पीती जा
क़तरा-क़तरा भीगती जा
भीगती जा तू जब तक इनमें नम है
और तेरे अन्दर की मिट्टी प्यासी है
मुझसे पूछ
कि बारिश को वापस आने का रास्ता कभी न याद हुआ
बाल सुखाने के मौसम अनपढ़ होते हैं