भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुझे उदास लिया ख़ुद भी सोग़वार हुए / फ़राज़
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:37, 18 नवम्बर 2009 का अवतरण
तुझे उदास किया ख़ुद भी सोगवार<ref>शोकग्रस्त</ref>हुए
हम आप अपनी महब्बत में शर्मसार<ref>लज्जित</ref>हुए
बला की रौ थी नदीमाने-आबला-पा<ref>पाँव के छाले वालों के पास बैठने वाला</ref>को
पलट के देखना चाहा कि ख़ुद ग़ुबार<ref>धूल</ref>हुए
गिला उसी का किया जिससे तुझ पे हर्फ़ आया<ref>इल्ज़ाम आया</ref>
वगरना<ref>अन्यथा</ref> यूँ तो सितम हम प’ बे-शुमार<ref>अनगिनत</ref> हुए
ये इंतकाम <ref>बदला</ref>भी लेना था ज़िन्दगी को अभी
जो लोग दुश्मने-जाँ <ref>जानी-दुश्मन</ref>थे वो ग़मगुसार <ref>ढाढस बँधाने वाले</ref>हुए
हज़ार बार किया तर्क़े-दोस्ती<ref>मित्रता तोड़ना</ref>का ख़याल<ref>विचार</ref>
मगर ‘फ़राज़’ पशेमाँ<ref>लज्जित</ref>हरेक बार हुए
शब्दार्थ
<references/>