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जाने कब तक रहे ये तरतीब / परवीन शाकिर

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जाने कब तक रहे ये तरतीब
दो सितारे खिले क़रीब क़रीब

चाँद की रोशनी से उसने लिखी
मेरे माथे पे एक बात अजीब

मैं हमेशा से उसके सामने थी
उसने देखा नहीं तो मेरा नसीब

रूह तक जिसकी आंच आती है
कौन ये शोला-रु है दिल के क़रीब

चाँद के पास क्या खिला तारा
बन गया सारा आसमान रक़ीब