भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Kavita Kosh से
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
देख रहे हो जो कुछ उसमें भी सब का मत विश्वास करो,
सुनी हुई बातें तो केवल गूँज हवा की होती हैं।