भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
परोपदेश / रामधारी सिंह "दिनकर"
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:13, 21 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर" |संग्रह=नये सुभाषित / रामधा…)
(१)
औरों को उपदेश सुनाना चुम्बन-सा ही है यह काम,
खर्च नहीं इसमें कुछ पड़ता, मन को मीठा लगता है।
(२)
आयु के दो भाग हैं, पहली उमर में
आदमी रस-भोग में आनन्द लेता है।
और जब पिछ्ली उमर आरम्भ हो जाती,
वह सभी को त्याग का उपदेश देता है।