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स्त्री-3 / जया जादवानी
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जब-जब भी तुम भरते हो
किसी स्त्री को बाँहों में
उसका मुख चूमते हो
वह बन्द कर लेती है आँखें
कैसे उसने चुनी थी मृत्यु जीवन से घबराकर
देख नहीं पाती मृत्यु को इतनी निकट से
सोचती है वह छलाँग लगाए इस हरहराते समुद्र में या
गरजने दे इसी तरह, निकल जाए बचकर
वह क्या करती है पता नहीं
सोचते हो तुम, डूब रही है, डूब चुकी तुममें
किनारे पर बैठी तब भी
छपाक-छपाक करती पैरों से
हँसती है, डूबते देखती है तुम्हें
तुम कभी जान नहीं पाते
क्या कर रहे थे तब भी हाथ उसके।