भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वर्षान्त / अशोक वाजपेयी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:16, 23 नवम्बर 2009 का अवतरण ("वर्षान्त / अशोक वाजपेयी" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite)))
वर्षान्त किसी की प्रतीक्षा नहीं करता
मेरी या तुम्हारी।
हरे-हलके बाँसों से
एक दिन अचानक आ
मुट्ठी से अन्तिम बादल बह जाने देगा।
फिर किसी दिन चौंक कर
देखेंगे हम :
अरे, यह खिड़की पर
इन्द्रधनुष कौन रच गया है,
किसने ये ढेर हरसिंगार ला धरे हैं?
वर्षान्त प्रतीक्षा नहीं करता
मेरी या तुम्हारी या किसी की।
रचनाकाल : 1959