भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

विदागीत / अशोक वाजपेयी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:21, 23 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक वाजपेयी |संग्रह=शहर अब भी संभावना है / अशोक …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भागते हैं,
छूटते ही जा रहे हैं पेड़
पीपल-बैर-बरगद-आम के,
बिछुड़ती पग-लोटती घासें,
खिसकती ही जा रही हैं
रेत परिचय की अनुक्षण,
दूरियों की खुल रही हैं मुट्ठियाँ!
फिर किसी आवर्त्त में बंध
कभी आऊँगा यहाँ
रेत जाने किन तहों तक धँसेगी
परिचय न चमकेगा कभी भी
चुप रहेंगे पेड़-धरती घास सब...
तब मुझे पहचान
छोड़ता हूँ आज जिसको
टेरेगा सहसा क्या
विदा का बूढ़ा-सा पाखी?


रचनाकाल : 1957