भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुनो-1 / अशोक वाजपेयी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:39, 23 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक वाजपेयी |संग्रह=शहर अब भी संभावना है / अशोक …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

"इन यू ऐट एव्री मूमेण्ट, लाइफ़ इज़ अबाउट टु हैपन" -- अलबर्तो द’ लासेर्दा

सुनो अपने हाथ दो
सुनो अपनी बाँह दो
सुनो अपने नयन दो
सुनो अपने होंठ दो
सुनो यों थको मत
पसीजो मत
सुनो, सुनो यों ऐंठो मत
सुनो फूटो मत
धार-धार हो बहो मत
सागर तुम हो
नदी की सीमा
जो मेरी है, गहो मत
सुनो-

सुनो जो एक फिर छोटा उदय चमकेगा
उसे नाम मैं दूँगा
कल खिलेगा तुम्हारी टहनियों पर
फूल वह,
वह सोनल शस्य तुम्हारा
उसे नाम मैं दूंगा
सुनो-
सुनो अपने हाथ दो--


रचनाकाल : 1959