भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसकी तसल्ली पर अब रोकूँ अश्कों के सैलाब मिरे / संकल्प शर्मा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:36, 23 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संकल्प शर्मा |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> किसकी तसल्ली …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसकी तसल्ली पर मैं रोकूँ अश्कों के सैलाब मेरे,
देख के दीवानों-सी हालत हँसते हैं अहबाब मेरे।
 

जब से गए हो नहीं चहकती चिड़िया आकर खिड़की में,
और महकना भूल गए हैं बाल्कनी के गुलाब मेरे।

उम्मीद के दामन से लिपटे हम कब तक तेरी राह तकें,
या तो दीद की सूरत दे या बिखरा दे सब ख्वाब मेरे।
 

पूछ रहा है यूँ तू मुझसे राज़ मेरी बर्बादी के,
ज़रा संभालना रुला न डालें तुझको कहीं जवाब मेरे।

(अहबाब : दोस्त)
(दीद : देखने को)