Last modified on 23 नवम्बर 2009, at 09:33

ज़ेरे-लब / फ़राज़

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:33, 23 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद फ़राज़ |संग्रह=दर्द आशोब / फ़राज़ }} {{KKCatNazm}} <poem> …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


ज़ेरे-लब<ref>आहिस्ता(बात)</ref>

किस बोझ से जिस्म टूटता है
इतना तो कड़ा सफ़र नहीं था
दो चार क़दम का फ़ासला क्या
फिर राह से बेख़बर नहीं था
लेकिन यह थकन यह लड़खड़ाहट
ये हाल तो उम्र-भर नहीं था

आग़ाज़े-सफ़र<ref>यात्रा का प्रारम्भ</ref> में जब चले थे
कब हमने कोई दिया जलाया
कब अहदे-वफ़ा <ref>वफ़ादारी के वचन</ref>की बात की थी
कब हमने कोई फ़रेब <ref>धोखा</ref>खाया
वो शाम,वो चाँदनी, वो ख़ुश्बू
मंज़िल का किसे ख़याल आया

तू मह्वे-सुख़न<ref>बातचीत में मगन,तल्लीन,खोई हुई</ref> थी मुझसे लेकिन
मैं सोच के जाल बुन रहा था
मेरे लिए ज़िन्दगी तड़प थी
तेरे लिए ग़म भी क़हक़हा<ref>ठहाका</ref> था
अब तुझसे बिछुड़ के सोचता हूँ
कुछ तूने कहा था क्या कहा था


शब्दार्थ
<references/>