भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जागो बंसी वारे जागो मोरे ललन / मीराबाई

Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:37, 23 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीराबाई }} <poem>जागो बंसी वारे जागो मोरे ललन। रजनी …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जागो बंसी वारे जागो मोरे ललन।
रजनी बीती भोर भयो है घर घर खुले किवारे।
गोपी दही मथत सुनियत है कंगना के झनकारे।
उठो लालजी भोर भयो है सुर नर ठाढ़े द्वारे ।
ग्वाल बाल सब करत कोलाहल जय जय सबद उचारे ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर शरण आया कूं तारे ॥