भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फिर भी तू इंतज़ार कर शायद / फ़राज़

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:07, 24 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद फ़राज़ |संग्रह=दर्द आशोब / फ़राज़ }} {{KKCatGhazal}} <poem…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


फिर उसी राहगुज़र <ref>मार्ग</ref>पर शायद<ref>कदाचित</ref>
हम कभी मिल सकें मगर शायद

जिनके हम मुंतज़िर<ref>प्रतीक्षारत</ref>रहे उनको
मिल गए और हमसफ़र<ref>सह-यात्री</ref>शायद

जान पहचान से भी क्या होगा
फिर भी ऐ दोस्त ग़ौर<ref>मनन</ref>कर ! शायद

अजनबीयत<ref>पराएपन</ref>की धुंध छँट जाए
चमक उठ्ठे तिरी नज़र शायद

ज़िन्दगी भर लहू रुलाएगी
यादे-याराने -बेख़बर<ref>बेख़बर मित्रों की याद</ref>शायद

जो भी बिछड़े वो कब मिले हैं ‘फ़राज़’
फिर भी तू इंतज़ार कर शायद

शब्दार्थ
<references/>