भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वहीं रख आया मन / लाल्टू
Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:15, 25 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह= }}<poem>उन्हीं इलाकों से वापस मुड़न…)
उन्हीं इलाकों से वापस मुड़ना है
वहीं से गुजरते हुए
देखना है वही पेड़, वही गुफाएँ
- *
आँखें बूढ़ी हुईं
पेट बूढ़ा हुआ
रह गया अभागा मन
तलाशता वहीं जीवन
- *
चार दिनों में कोई लिखता
हरे मटर की कविता
मैं बार बार ढूँढता शब्द
देखता हर बार छवि तुम्हारी
- *
उन गुजरते पड़ावों पर
अब सवारी नहीं रुकती
बहुत दूर आ चुका हूँ
वहीं रख आया मन
वही ढूँढता चाहता मगन।