भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ और टुकड़े / केदारनाथ सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:43, 26 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ सिंह |संग्रह=उत्तर कबीर और अन्य कविता…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1.

अकेली चुप्पी
भयानक चीज़ है
जैसे हवा में गैंडे का
अकेला सींग

पर यदि दो लोग चुप हों
पास-पास बैठे हुए
तो उतनी देर
भाषा के गर्भ में
चुपचाप बनती रहती है
एक और भाषा।

2.

बरसों तक साथ-साथ
रहने के बाद
जब वे विधिवत अलग हुए
तो सारे फ़ैसले में
यह छोटी-सी बात कहीं नहीं थी
कि जहाँ वे लौटकर जाना चाहते हैं
वह अपना अकेलापन
वे परस्पर गँवा चुके हैं
बरसों पहले।

3.

जन्म-मृत्यु सूचना के
उस नए दफ़्तर में
पहले तय हुआ
जन्म का रजिस्टर अलग हो
मृत्यु का अलग

फिर पाया गया
यह अलगाव बिल्कुल बेमानी है।