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जगमगाते हुए शहरों को तबाही देगा / मुनव्वर राना

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ज्गमागाते हुए शहरों को तबाही देगा
और क्या मुल्क को मग़रूर<ref>घमण्डी,दम्भी</ref>सिपाही देगा

पेड़ उम्मीदों का ये सोच के न काटा कभी
फल न आ पाएँगे इसमें तो हवा ही देगा

तुमने ख़ुद ज़ुल्म को मेयारे-हुक़ुमत <ref>प्रशासन का मानदण्ड</ref>समझा
अब भला कौन तुम्हें मसनदे-शाही<ref>राजसी प्रतिष्ठा</ref>देगा

जिसमें सदियों से ग़रीबों का लहू जलता हो
वो दीया रौशनी क्या देगा सियाही देगा

मुंसिफ़े-वक़्त<ref>समय के न्यायकर्त्ता</ref>है तू और मैं मज़लूम<ref>प्रताड़ित</ref>मगर
तेरा क़ानून मुझे फिर भी सज़ा ही देगा

किस में हिम्मत है जो सच बात कहेगा ‘राना’
कौन है अब जो मेरे हक़ में गवाही देगा

शब्दार्थ
<references/>