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अन्योन्याश्रित / अरुण आदित्य
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हवा चूमती है फूल को
और फिर नहीं रह जाती है वही हवा
कि उसके हर झोंके पर फूल ने लगा दी है अपनी मुहर
और फूल भी कहाँ रह गया है वही फूल
कि उसकी एक-एक पंखुड़ी पर हवा ने लिख दी है सिहरन
फूल के होने से महक उठी है हवा
हवा के होने से दूर-दूर तक फैल रही है फूल की खुशबू
इस तरह एक के स्पर्श ने
किस तरह सार्थक कर दिया है दूसरे का होना