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औरत-7 / चंद्र रेखा ढडवाल
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औरत (सात)
रोज़-रोज़
संगेलती है कचरा
बाहर
रोज़-रोज़
समेटती है कचरा
भीतर
एक नहीं
शत-शत कंठ विषपाई
नारी सदा-सदा से.