भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घराना / दादी अम्मा दादी अम्मा मान जाओ

Kavita Kosh से
Gumnaam (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:04, 30 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: '''रचनाकर् - शकील् बदयुनि''' <poem> दादी अम्मा दादी अम्मा मान् जाओ दादी अ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकर् - शकील् बदयुनि


दादी अम्मा दादी अम्मा मान् जाओ
दादी अम्मा दादी अम्मा मान् जाओ
छोडो जी ये गुस्सा जारा हंस् के दिखाओ

छोटी छोटी बातों पे न बिगडा करो
छोटी छोटी बातों पे न बिगडा करो
गुस्सा हो तो ठन्डा पानी पी लिया करो
खाली पीली अपना कलेजा न जलाओ
दादी अम्मा दादी अम्मा मान् जाओ...

दादि तुम्हे हम् तो मना के रहेगें
दादि तुम्हे हम् तो मना के रहेगें
खाना अपने हाथों से खिला के रहेगें
चाहे हमे मारो चाहे हमे धमकाओ
दादी अम्मा दादी अम्मा मान् जाओ...

कहो तो तुम्हारि हम् चम्पी कर् दें
कहो तो तुम्हारि हम् चम्पी कर् दें
पीयो तो तुम्हारे लिये हुक्का भर् दें
हसी न छुपाओ जरा आँखे तो मिलाओ
दादी अम्मा दादी अम्मा मान् जाओ...

हमसे जो भुल् हुई माफ् करो मा
हमसे जो भुल् हुई माफ् करो मा
गले लग् जाओ दिल् साफ् करो मा
अच्छी सी कहानि कोई हमको सुनाओ
दादी अम्मा दादी अम्मा मान् जाओ...
दादी अम्मा दादी अम्मा मान् जाओ...