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धूम ऐसी मचा गया कोहरा / बिरजीस राशिद आरफ़ी
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धूम ऐसी मचा गया कोहरा
जैसे सूरज को खा गया कोहरा
बन के अफ़वाह छा गया कोहरा
बंद कमरों मे आ गया कोहरा
तेरे पन्नों पे आज ऐ अख़बार
कितनी लाशें बिछा गया कोहरा
साँस के साथ दिल की रग-रग में
बर्फ़ की तह जमा गया कोहरा
अपने बच्चों से क्या कहे मज़दूर
घर का चूल्हा बुझा गया कोहरा
धूप कितनी अज़ीम नेमत है
चार दिन में बता गया कोहरा
उनके चेहरे पे सुरमई आँचल
चाँद पे जैसे छा गया कोहरा.
शब्दार्थ
<references/>