भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रात भर ढूँढता फिरा जुगनू / बिरजीस राशिद आरफ़ी

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:30, 2 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बिरजीस राशिद आरफ़ी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal} <poem> रात भर ढू…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

{{KKCatGhazal}



रात भर ढूँढता फिरा जुगनू
सुब्ह को ख़ुद ही खो गया जुगनू

रोशनी सब की खा गया सूरज
चाँद ,तारे, शमा, दिया, जुगनू

तीरगी से यह जंग जारी रख
हौसला तेरा मरहवा जुगनू

क्यों न ख़ुश हो ग़रीब की बिटिया
उसकी मुठ्ठी में आ गया जुगनू

नूर तो हर जगह पहुँचता है
कूड़ियों में पला-बढ़ा जुगनू

धुँधले-धुँधले- से हो गए तारे
मिस्ले कन्दील जब उड़ा जुगनू

चेहरे बच्चों के बुझ गए 'राशिद'
माँ के आँचल में मर गया जुगनू.

शब्दार्थ
<references/>