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देवली कैम्प जेल में / नरेन्द्र शर्मा

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एक हमारी भी दुनिया है,
घिरी कँटीले तारों से जो घिरी हुई दीवारों से!

इन तारों के, दीवारों के पार चाँद-सूरज उगते हैं,
ऊपर दिन के हंस रात के मानस के मोती चुगते हैं!
हम भी दूर दूर दुनिया से उन सूने नभ-तारों-से!

हम दीवारों के भीतर हैं, मन के भीतर हैं मनुहारें,
पर पलकों की ओट नहीं होने देती काली दीवारें,
मन मारे मनुहार पड़ी हैं बँधी कँटीले तारों से!