भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इकरार / संकल्प शर्मा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:56, 5 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संकल्प शर्मा |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> मुझे इकरार कर…)
मुझे इकरार करना है,
कि अब तुम मेरे ख़्वाबों में,
ख़्यालों में नहीं आते
मेरी तन्हाइयों में,
दर्द मैं ज़ख़्मों में,
छालों में नहीं आते
मगर इतना तो है कि तुम…
मुझे हर सुबह,
कभी शबनम,
कभी गुंचा,
कभी खुशबू,
कभी चिडिया…
हर एक शय में,
हर एक एहसास में,
छूकर गुज़रते हो,
मेरा हर दिन तुम्हारा नाम लेकर ही
सफ़र आगाज़ करता है…