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संस्कृति का संवाहक / त्रिलोचन

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पीपल का पेड़
पेड़ होते हुए देवता है
लोग इसे पूजते हैं
कहते हैं, इस गाँव में
सभी देव वास करते हैं।

पत्थर की चिकनी और गोल शिलाएँ
इस के मूल में श्रद्धा से रखते हैं
फूल फल चढाते हैं
फिर प्रसाद आए हुए लोगों में बाँटते हैं।

पीपल का पेड़ और पेडों के समान
काटा नहीं जाता
जिस से सबका हित हो
ऎसा कोई काम कभी आ पड़े
तभी लोग इस पर कुठार भी चलाते थे।

इस पेड़ को भारत के अस्तित्व और
संस्कृति का संवाहक कहते थे भारतीय।
गौतम का बोधिवृक्ष
यही है।