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फैला है नीला आकाश / रामकुमार वर्मा

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फैला है नीला आकाश।
सुरभि, तुम्हें उर में भरने को
फैला है इतना आकाश॥
तुम हो एक साँस सी सुखकर
नभ मण्डल है एक शरीर।
यह पृथ्वी मधुमय यौवन है
तुम हो उस यौवन की पीर॥
पथ बतला देना तारक--
दीपक का दिखला नवल प्रकाश।
सुरभि, तुम्हें उर में भरने को
मैं फैलूँगा बन आकाश॥