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सभी दिखाएँ उर से छूकर / रामकुमार वर्मा

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सभी दिखाएँ उर से छूकर
फैला यह उदार अम्बर है।
और बादलों के काले
कारागृह में बन्दी सागर है॥
कैसा वह प्रदेश है, जिसमें--
एक उषा, वह भी नश्वर है।
उज्ज्वल एक तड़ित है जिसका--
जीवन भी केवल क्षण भर है!!
इस जीवन की व्यथित कल्पना
आज समय-गति-सी चंचल है!
नभ से सीमित आज न जाने
क्यों मेरा यह स्वर निर्बल है!!