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मेरे सुमनों के नवल हास / रामकुमार वर्मा
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मेरे सुमनों के नवल हास!
जग इतना मलीन है, इसमें--
आकर कर जाओ निवास!!
वर्षा है आँसू से सभीत,
शीतल साँसों से बना शीत;
दुख की ज्वालाओं में हँसता--
ग्रीष्म, यही है जग विलास॥
यह प्रथित पवन है निराकार,
इसमें तुम भर लो ओ अपार!
तुमसे सुरभित हो जावे--
मेरे जीवन की साँस साँस॥
मेरे सुमनों के नवल हास!