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आमद-ए-ख़त से हुआ है / ग़ालिब

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लेखक: गा़लिब

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आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त
दूद-ए-शम-ए-कुश्ता था शायद ख़त-ए-रुख़्सार-ए-दोस्त

ऐ दिले-ना-आकिबतअंदेश ज़ब्त-ए-शौक़ कर
कौन ला सकता है ताबे-जल्वा-ए-दीदार-ए-दोस्त

ख़ाना वीराँसाज़ी-ए-हैरत तमाशा कीजिये
सूरत-ए-नक़्शे-क़दम हूँ रफ़्ता-ए-रफ़्तार-ए-दोस्त

इश्क़ में बेदाद-ए-रश्क़-ए-ग़ैर ने मारा मुझे
कुश्ता-ए-दुश्मन हूँ आख़िर गर्चे था बीमार-ए-दोस्त

चश्म-ए-मय रौशन कि उस बेदर्द का दिल शाद है
दीदा-ए-पुर-ख़ूँ हमारा सागर-ए-सर-शार-ए-दोस्त