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जीते-मरते / चंद्र रेखा ढडवाल

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मर्द जीता है
सारी ज़िंदगी
उस तलवार की
धार तराशते
जिसे देखते
जिसे थामते
और जिसपर चलते
औरत को जीने का
उपक्रम करना है
थोड़ा-थोड़ा जीते
बहुत-बहुत मरना है