भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खाद पानी मिट्टी / चंद्र रेखा ढडवाल
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:53, 13 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्र रेखा ढडवाल |संग्रह=औरत / चंद्र रेखा ढडवाल }}…)
खिले हुए सुन्दर फूलों की मिल्कियत
दंभ उसका
पीले कमज़ोर
तो पराजित
मुँह चुराते नाराज़
रंग गंध के मेलों का
सिरजनहारा
पालक
दृष्टा
पुरुष
और दोनों ही के लिए
खाद -पानी हो
मिट्टी होती
खिलने में खिलती कम
मुर्झाने में मुर्झाती
ज़्यादा
औरत.