भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीने की कला.. / त्रिलोचन

Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:10, 14 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोचन }}<poem>भूख और प्यास आदमी से वह सब कराती है …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भूख और प्यास
आदमी से वह सब कराती है
जिसे संस्कृति कहा जाता है।

लिखना, पढना, पहनना, ओढना,
मिलना, झगड़ना, चित्र बनाना, मूर्ति रचना,
पशु पालना और उन से काम लेना यही सारे
काम तो इतिहास है मनुष्य के सात द्वीपों और
नौं खंड़ों में।

आदमी जहाँ रहता है उसे देश कहता है। सारी
पृथ्वी बँट गई है अनगिनत देशों में। ये देश अनेक
देशों का गुट बना कर अन्य गुटों से अक्सर
मार काट करते हैं।

आदमी को गौर से देखो। उसे सारी कलाएँ, विज्ञान
तो आते हैं। जीने की कला उसे नहीं
आती।

6.12.2002