भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जोड़ी टूट गई / माखनलाल चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:21, 14 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी |संग्रह=समर्पण / माखनलाल चतु…)
तरुणाई के प्रथम चरण में जोड़ी टूट गई,
फूली हुई रात की रानी, प्रातः रूठ गई!
गन्ध बनी, साँसों भर आई
छन्द बनी फूलों पर छाई
बन आनन्द धूलि पर बिखरी
यौवन के तुतलाते वैभव, सन्ध्या लूट गई!
फूलों भरी रात की रानी सहसा रूठ गई।
मुसुकों भरी मनोरम बेली
यादों की डालों पर खेली
गिरी सभी साधें अलबेली
ऊँचे पर उठती अभिनवता पथ में छूट गई
फूली हुई रात की रानी, कैसे रूठ गई?
रचनाकाल: पातल पानी रेलवे स्टेशन-१९५२