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गीत (३) / माखनलाल चतुर्वेदी
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बदरिया थम-थम कर झर री!
सागर पर मत भरे अभागन,
गागर को भर री!
बदरिया थम-थम कर झर री!
एक-एक, दो-दो, बूँदों में,
बँधा सिन्धु का मेला,
सहस-सहस बन विहँस उठा है,
यह बूँदों का रेला।
तू खोने से नहीं बावरी
पाने से डर री!
बदरिया थम-थम कर झर री!
जग आये घनश्याम देख तो,
देख गगन पर आगी,
तूने बूँद, नींद खितिहर ने,
साथ-साथ ही त्यागी।
रही कजलियों की कोमलता,
झंझा को वर री!
बदरिया थम-थम कर झर री!
रचनाकाल: खण्डवा-१९५३